कुड़मी जाति को एसटी दर्जा देने की मांग पर दायर रिट पिटीशन को झारखंड हाई ने स्वीकार किया
कुड़मी समुदाय द्वारा समय समय पर स्वयं को एसटी का दर्जा देने की मांग पर आंदोलन किया जा रहा है। वहीं, एसटी दर्जा प्राप्त करने के लगातार कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही हैं। इस बीच बड़ी खबर सामने आई हैं, जिसमें कुड़मी समुदाय को एक सफलता मिली है। बताया जा रहा है कि एबओरिजिनल कुड़मी पंच के अध्यक्ष डाक्टर बी० बी० महतो द्वारा झारखंड हाई कोर्ट में रिट पिटीशन दायर किया गया है, जिसकी सुनवाई आज सोमवार को हुई। कोर्ट में सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने कुड़मी समुदाय के रिट पिटीशन को स्वीकार कर लिया है। वहीं, कोर्ट ने सभी पक्ष को हलफनामा दायर करने के निर्देश के साथ पिटीशन को मेरिट पर सुनवाई के लिए रख दिया है।
डाक्टर बी० बी० महतो द्वारा दायर रिट पिटीशन संख्या WPC 2267/2021 की सुनवाई झारखंड हाई कोर्ट में आज न्यायाधीश राजेश कुमार की अदालत में हुई, जहां अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के पश्चात रिट पिटीशन को स्वीकार कर लिया। सुनवाई में उपस्थित सभी पक्षों के अधिवक्ताओं ने सरकार और अन्य पक्षों की तरफ से नोटिस स्वीकार कर लिया है।
बता दें कि डाक्टर बी० बी० महतो ने अपने रिट में कहा है कि वे भारत सरकार की 1913 और 1931 की अधिसूचनाओं 550 और 3563 J में आदिवासी अंकित थे। लेकिन राष्ट्रपति की 1950 की अधिसूचना में छोटानागपुर के कुड़मियों को बिहार का कुर्मी समझ कर अति पिछड़ा समुदाय की श्रेणी में डाल दिया, जो संविधान के अनुच्छेद 342 का उल्लंघन है। उन्होंने रिट में आगे कहा कि 1913 और 1931 की अधिसूचना कुड़ुमियों के आदिवासी होने का अकाट्य प्रमाण हैं, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने 11 मार्च 2022 को सिविल संख्या 7117/ 2019 प्रिया प्रमोद गजबे बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में पुष्ट किया है।
रिट पिटीशन में डाल्टन, रिजले और गिअरसन जैसे ख्यातिलब्ध विद्वानों की पुस्तकों यथा Tribes & Caste of Bengal, Ethnographic Grossary, Census of India, Vol. VII Bihar & Orissa Part I, Report 1, माननीय पटना उच्च न्यायालय का कृतीबास महतो बनाम बुधन महतानी का आदेश और के एस सिंह की पुस्तक People of India – Bihar including Jharkhand में दिये गये पुरातत्व (Archeological) और मानव विज्ञान (Anthropological) के तथ्यों को उबार कर अपने दावों की सत्यता को प्रमाणित करने की कोशिश की है।
डॉ. विद्या भूषण महतो ने कहा कि अब तो कुड़ुमियों के आदिवासी होने के जेनेटिक प्रमाण भी हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ख्यातिप्राप्त जेनेटिसिस्ट ज्ञानेश्वर चौबे द्वारा कुड़ुमियों के 180 Blood samples की जांच की जा रही हैं। कुड़ुमियों के Mitochondrial DNA में M31 म्यूटेशन मिला जो अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले सबसे पुराने आदिवासी समूह के साथ मेल खाती हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि कुड़ुमी भी इस देश के सबसे पुराने आदिवासी हैं, जो छोटानागपुर के पठार पर 65000 साल से रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब सरकार से न्याय नहीं मिला तो झारखंड हाई कोर्ट की शरण में गए। उन्होंने कहा कि 1950 की अधिसूचना में भूल हुई है। हमने उच्च न्यायालय से इंतजा की है कि वे भारत सरकार को उस भूल को सुधार कर कुड़ुमियों को फिर से एसटी सूची में शामिल करने का निर्देश देने की कृपा करें।
डॉक्टर बी० बी० महतो द्वारा दायर रिट पिटीशन की पैरवी प्रसिद्ध अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव, रोहित सिंहा, मंजरी सिन्हा, एम आई हसन और निर्मल घोष ने की। इस संबंध में अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव ने बताया कि तमाम तथ्यों को प्रस्तुत करते हुए झारखंड के कुड़मी समुदाय को न्याय दिलाने के लिए वकालत में तकरीर जारी है।
अधिवक्ता अखिलेश ने बताया कि जिस प्रकार झारखंड में संताल समेत अन्य जनजातियां आदिवासी हैं, उसी प्रकार कुड़मी भी आदिवासी हैं। इसके कई प्रमाण हैं और वही प्रमाण झारखंड हाई कोर्ट में प्रस्तुत किए गए हैं। उन्होंने इस समुदाय की भाषा और इसकी जेनेटिक पृष्ठभूमि को आधार बनाकर कर दलील पेश की है। उन्होंने दावा किया है कि उनके द्वारा हाई कोर्ट में जो दलील और तथ्य को प्रस्तुत किया गया है, वह बहुत ही पुख्ता सबुत हैं। उन्होंने कहा कि मातृ पक्ष के डीएनए की जांच में माईटोकोन्ड्रियल डीएनए में हैपलोग्रुप M और M2 केंद्रित रूप से 93% तक झारखंड के कुड़मियों में मिला। उससे यह ज्ञात होता है कि ये होविनियन समुदाय के हैं और इनका उद्भव 65000 से 54,000 के बीच हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि पितृ पक्ष के डीएनए की जांच अभी चल रही है, जिसके रिपोर्ट आने का इंतजार है।