मौकापरस्त नेता ने भाजपा की सदस्यता लेने के लिए शुरू की लॉबिंग तेज
जमशेदपुर। ईचागढ़ विधानसभा की राजनीति में इन दिनों उहापोह की स्थिति बनी हुई है। विशेष रूप से भाजपा के अंदरखाने में तनाव का माहौल बना हुआ है। बीते बुधवार को ईचागढ़ भाजपा के दो गुटों की मारपीट के बाद विधानसभा में राजनीति का बाजार गर्म है। जगह जगह राजनीतिक चर्चाएं होने लगी हैं। इस बीच मौकापरस्त नेता ने भाजपा जॉइन करने के लिए लॉबिंग तेज कर दी है। मौके की नजाकत को देखते हुए सहजता से भाजपा की सदस्यता लेने तथा आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट झटकने के लिए कोल्हान के एक पूर्व विधायक ने अपनी कसरत शुरू कर दी है। उनके द्वारा एक न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से स्वयं को भाजपा के सशक्त दावेदार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। ईचागढ़ विधानसभा के लोगों में चर्चा है कि वह पूर्व विधायक मौकापरस्त ही है जो ऐसे दुखद राजनीतिक घटनाक्रम के बीच आपदा में असवर खोज रहे हैं। लोगों का कहना है कि यदि वह वाकई में एक सशक्त दावेदार हैं तो सदस्यता लेकर बीते चार साल से सक्रिय क्यों नहीं रहे।
गैर मतदाता नेताओं की सक्रियता के बीच हुई राजनीतिक हिंसा की घटनाएं
ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र में बीते तीन दशक से गैर मतदाता विधायक ही प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। इस दौरान कई राजनीतिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं। यहां तक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वीता से हुई हिंसा के कारण कार्यकर्ताओं की हत्या तक हो चुकी हैं। हाल ही में भाजपा के दो गुटों में हुई हिंसा में भी गैर मतदाता नेताओं की भूमिका स्पष्ट है। 90 के दशक से पूर्व गैर मतदाता प्रत्याशियों को ईचागढ़ विधानसभा में कोई स्थान नहीं मिलता था। 90 के दशक से पूर्व राजनीति में सक्रिय रहे वयोवृद्ध नेतागण अपने अनुभव में बताते हैं कि उन दिनों राजनीतिक वातावरण में आपसी प्रेम की भावना झलकती थी। विचारों में मतभेद होने के बावजूद कभी मनभेद नहीं होता था। उन दिनों क्षेत्र के विकास में सामूहिक प्रयास देखा जाता था। चाहे किसी भी दल के कार्यकर्ता रहे हों, सामाजिक कार्यों में सबकी सहभागिता रहती थी। चुनावों के बीच प्रतिद्वंद्वी आपस में मिल जाते थे तो साथ में चाय की चुस्की लेते हुए बातचीत करते थे। सौहार्दपूर्ण वातावरण में चुनाव संपन्न होने के बाद चुनावी प्रत्याशी एकसाथ बैठकों में शामिल होते थे। 90 कि दशक से पूर्व नेताओं व कार्यकर्ताओं में बिंदु मात्र भी द्वेष नहीं होता था। पर, 90 के दशक के बाद ईचागढ़ विधानसभा की राजनीति में गाली गलौज और हिंसा ने स्थान ले लिया है। अब तो शिष्टाचार को ताक में रखकर वरिष्ठ नेताओं द्वारा स्वयं ही कार्यकर्ताओं को शराब परोसने की परंपरा बन गई हैं।
इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या फिर से ईचागढ़ की जनता किसी गैर मतदाता प्रत्याशी को अपना विधायक चुनेगी। क्या ईचागढ़ में हिंसात्मक राजनीति जारी रहेगी? आखिर मौकापरस्त नेताओं के करीबी बनने के चक्कर में ईचागढ़ के कार्यकर्ता कबतक जेलयात्रा करेंगे और अपना खून बहाएंगे?