चांडिल : सरहुल पर्व पर झूम उठा आदिवासी समुदाय – मनमौजी स्वभाव और प्रकृति प्रेम ही आदिवासियों की पहचान : सुखराम हेम्ब्रम
चांडिल। प्रखंड के गोलचक्कर, चांडिल डैम, खुदियाडीह समेत अन्य स्थानों पर स्थित दिशोम जाहेरगाढ़ पर आज दिशोम बाहा (सरहुल) पर्व मनाया गया। सुबह से दोपहर तक संथाल समाज के नायके (पुजारी) द्वारा जाहेरगाढ़ में पूजा अर्चना की। वहीं, लोगों के बीच प्रसाद वितरण किया गया। संध्या काल में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के महिला व पुरुष पारंपरिक परिधान में सजधज कर कार्यक्रम स्थल पहुंचकर नृत्य किया। यहां ढोल, नगाड़ा, मांदर, करताल आदि वाद्ययंत्रों की धुन और सरहुल गीतों पर सभी लोग झूम उठे। जमशेदपुर से आए तो नृत्य दल ने भी प्रस्तुति दी, जिसका आनंद सभी अतिथियों ने उठाया।
इस अवसर पर झामुमो के वरिष्ठ नेता एवं स्वच्छ चांडिल – स्वस्थ्य चांडिल के संस्थापक सुखराम हेम्ब्रम ने उपस्थित लोगों को सरहित पर्व की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि सरहुल आदिवासियों का महापर्व है। सरहुल पर्व प्रकृति के प्रति प्रेम का प्रतीक है। सुखराम हेम्ब्रम ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति के बीच स्वतंत्र होकर रहना पसंद करते हैं और प्रकृति का संरक्षण करते हैं। अपने पुरखों की विरासत और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करते हुए आदिवासी समाज के अनेकों योद्धाओं ने प्राणों का त्याग किया है, इतिहास में इसका प्रमाण है। सुझराम हेम्ब्रम ने कहा कि मनमौजी स्वभाव और प्रकृति के प्रति प्रेम ही आदिवासियों की पहचान है। उन्होंने बताया कि मनमौजी स्वभाव से तात्पर्य यह है आदिवासी समाज कम संसाधन में भी खुशहाल जीवन व्यतीत करते हैं लेकिन किसी की गुलामी स्वीकार नहीं करते हैं, शोषण और अत्याचार बर्दाश्त नहीं करते हैं।