चांडिल डैम बंदोबस्ती की कथित 97 लाख राशि की वसूली के लिए दायर पीआईएल के याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट ने लगाई फटकार, कहा – एक लाख जुर्माना भरें या पीआईएल वापस लें
रांची/चांडिल। सरायकेला – खरसावां जिले के चांडिल स्थित सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के चांडिल डैम की कथित 97 लाख रुपये की वसूली को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया है। बताया जाता है कि चांडिल बांध मत्स्यजीवी स्वावलंबी सहकारी समिति कथित तौर पर 97 लाख रुपये का देनदार हैं। इसके लिए सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना ने समिति के ऊपर सर्टिफिकेट केस दर्ज किया है। वहीं, समिति ने न्यायालय में मामले को लेकर अपील दायर की है। इस तरह से उक्त मामला निचली अदालत में विचाराधीन है।
इधर, बसंत कुमार साहू ने निजी दिलचस्पी रखते हुए झारखंड हाई कोर्ट में आनन फानन में जनहित याचिका दायर कर दिया था। जनहित याचिका में चांडिल बांध मत्स्यजीवी स्वावलंबी सहकारी समिति की कथित बकाया राशि की वसूली करने की मांग की थी। उक्त जनहित याचिका में पिछले दिनों 20 जून को अंतिम सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता बसंत कुमार साहू को फटकार लगाई है। वहीं, न्यायालय ने याचिकाकर्ता से तत्काल जनहित याचिका को वापस लेने अथवा एक लाख रुपये का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी थी, जिसपर बसंत कुमार साहू ने याचिका को वापस ले लिया है। सरकारी पक्ष के अधिवक्ता ने उच्च न्यायालय को बताया है कि जिस विषय पर जनहित याचिका दायर किया गया है, वह मामला निचली अदालत में लंबित है, ऐसे में जनहित याचिका खारिज किया जाना चाहिए।
बताया जाता है कि सुवर्णरेखा बहुउद्देश्यीय परियोजना के अधिकारियों ने वर्ष 2017 में चांडिल बांध मत्स्यजीवी स्वावलंबी सहकारी समिति के अध्यक्ष और सचिव के नाम पर डैम की बंदोबस्ती कर दी थी। जबकि, पुनर्वास नीति अथवा बंदोबस्ती प्रक्रिया के तहत समिति के नाम पर ही बंदोबस्ती किए जाने का प्रावधान है। चूंकि, सहकारी समितियों में अध्यक्ष, सचिव व कोषाध्यक्ष जैसे पदों पर चुनाव होते हैं और नामित व्यक्ति बदलते हैं। ऐसे में किसी नामित व्यक्ति के नाम पर बंदोबस्ती करना ही नियम के विरुद्ध है।
इधर, चांडिल बांध मत्स्यजीवी स्वावलंबी सहकारी समिति के अध्यक्ष नारायण गोप ने कहा कि चांडिल डैम का निर्माण विस्थापितों की जमीन पर बना है और पुर्नवास नीति के अनुसार डैम में मत्स्य पालन, नौका विहार संचालन समेत अन्य किसी भी कार्य में विस्थापित सदस्यों को प्राथमिकता देने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि एक वर्ष के लिए बंदोबस्ती करके परियोजना के अधिकारियों द्वारा 97 लाख रुपये की मांग की जा रही हैं, जो पुनर्वास नीति के विरुद्ध है। महज एक वर्ष के लिए विस्थापितों से 97 लाख रुपये की मांग करना अव्यवहारिक तथा विस्थापितों के साथ अन्याय है। उन्होंने कहा कि यदि उच्च स्तरीय जांच और अंकेक्षण किया जाएगा तो परियोजना के कई अधिकारी फंसेंगे।