सुखराम हेम्ब्रम ने कर दी महारथियों की नींद हराम, आदिवासी व मुस्लिम समुदाय के बीच बढ़ रही लोकप्रियता – विधानसभा चुनाव के समीकरण में हो सकता बड़ा उलटफेर
Political Analysis
इन दिनों ईचागढ़ विधानसभा में राजनीति का समीकरण बड़ी तेजी से बदलता दिख रहा है। ऐसा माना जाता है कि ईचागढ़ विधानसभा में जब भी कोई दमदार आदिवासी नेता चुनाव में बतौर प्रत्याशी खड़े हो जाते हैं तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार की हार और अन्य किसी दल या प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित हो जाती हैं। ऐसा नमूना 2009 के विधानसभा चुनाव में देखा गया था, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में समीकरण बदलने की प्रबल संभावना जताई जा रही हैं। ईचागढ़ विधानसभा के चांडिल निवासी सुखराम हेम्ब्रम वैसे तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के पूर्व जिला सचिव हैं, लेकिन उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में किस्मत आजमाने का ऐलान कर चुके हैं। सुखराम हेम्ब्रम किसी परिचय के मोहताज नहीं है, बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते हैं। फिलहाल वह स्वच्छ चांडिल स्वस्थ चांडिल बैनर तले क्षेत्र में सक्रिय हैं।
बीते कुछ वर्षों से वह क्षेत्र में एक सक्रिय राजनेता के रूप में लोगों के बीच कार्यक्रम कर रहे हैं। माना जा रहा है कि झामुमो विधायक सविता महतो की कार्यशैली से नाराज होकर ही उन्होंने झामुमो से अलग होकर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। सुखराम हेम्ब्रम के चुनाव लड़ने के निर्णय के पीछे आदिवासियों और मुस्लिम समुदाय के गण्य मान्य लोगों की सहमति बताई जा रही हैं। आदिवासी और मुस्लिम समुदाय झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस व राजद गठबंधन के कोर वोटर माने जाते हैं। दूसरी तरफ एसटी का दर्जा के मुद्दे पर कुड़मी समुदाय झामुमो से नाराज चल रहा है, ऐसे में झामुमो विधायक सविता महतो की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। यूं कहें कि सुखराम हेम्ब्रम ने अपने सक्रियता से राजनीति के महारथियों की नींद हराम कर दी है।
इन दिनों सुखराम हेम्ब्रम क्षेत्र में सक्रिय हैं और जनता के बीच जाकर वह समर्थन मांग रहे हैं। बीते कुछ महीनों से आदिवासी समुदाय गोलबंद होकर सुखराम हेम्ब्रम को समर्थन कर रहे हैं और कार्यक्रमों को सफल बना रहे हैं लेकिन अब तो ईचागढ़ विधानसभा के मुस्लिम समुदाय की ओर से भी भरपूर समर्थन मिलना शुरू हो गया है। हाल के दिनों में सुखराम हेम्ब्रम को कपाली के गोसनगर के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने आमंत्रित किया था, जहां भव्य स्वागत के साथ सुखराम हेम्ब्रम को समर्थन किया। बताया जा रहा है कि कपाली समेत चौड़ा, झिमड़ी – सिंदूरपुर, गौरंगकोचा, अमड़ा आदि मुस्लिम बहुल इलाकों में सुखराम हेम्ब्रम ने अपनी पकड़ मजबूत बना लिया है।
बतौर निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सुखराम हेम्ब्रम के चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद भाजपा, आजसू पार्टी तथा अन्य संभावित उम्मीदवार खुशी से झूम रहे हैं और ख्याली पुलाव खाना शुरू कर दिया है। लेकिन इस बार 2009 वाली समीकरण के उलट नतीजे आने के संकेत मिल रहे हैं। 2009 में सीएम हेमंत सोरेन के मामा एवं झामुमो नेता गुरुचरण किस्कु ने भी बगावत करते हुए झामुमो विधायक सह पूर्व उपमुख्यमंत्री स्वर्गीय सुधीर महतो के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव में खड़े हो गए थे। दूसरी ओर 2009 में झामुमो और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं थी, बल्कि झाविमो और कांग्रेस में गठबंधन हुआ था। निर्दलीय उम्मीदवार गुरुचरण किस्कु के पक्ष में अधिकांश आदिवासी वोट पड़े थे। गुरुचरण किस्कु के हिस्से में केवल संथाल – आदिवासियों के वोट आए थे तथा झाविमो के साथ कांग्रेस गठबंधन में होने के कारण मुस्लिम वोट झाविमो उम्मीदवार के पक्ष में चला गया था। इस प्रकार से झामुमो के सुधीर महतो को करारी हार का सामना करना पड़ा था।
जबकि, आगामी 2024 में होने वाली विधानसभा चुनाव में 2009 जैसा समीकरण बनता हुआ नहीं दिख रहा है। झामुमो, कांग्रेस व राजद का गठबंधन तय माना जा रहा है तथा झामुमो विधायक सविता महतो ही उम्मीदवार होंगी। दूसरी ओर भाजपा व आजसू पार्टी में गठबंधन होगा या नहीं अबतक स्पष्ट नहीं हो पाया है। सीट शेयरिंग को लेकर भाजपा व आजसू पार्टी में खींचतान जारी है। सबसे अहम है कि झाविमो पार्टी अब नहीं है, भाजपा में विलय हो चुका है। वहीं, 2009 के उम्मीदवार गुरुचरण किस्कु की तुलना में इस बार सुखराम हेम्ब्रम के पक्ष में संथाल – आदिवासी समुदाय के अलावा भूमिज, मुंडा, माहली, उरांव जैसे आदिवासी समुदाय तथा मुस्लिम समुदाय भी साथ दिख रहे हैं। वहीं, कुड़मी जाति को छोड़कर पिछड़ी तथा सामान्य जातियों के कुछ हिस्से का झुकाव भी सुखराम हेम्ब्रम की ओर देखने को मिल रहा है।
इस स्थिति के अनुसार यदि भाजपा और आजसू पार्टी में गठबंधन नहीं होता है तो 2019 की तरह ही आपस में वोटों का बंटवारा होना तय है। वहीं, दूसरी ओर यदि सभी आदिवासी, मुस्लिम तथा पिछड़ी व सामान्य जातियों के चंद हिस्से सुखराम हेम्ब्रम के पक्ष में आ जाते हैं तो ईचागढ़ विधानसभा में राजनीति की ठेकेदारी करने वालों का धंधा हमेशा के लिए चौपट हो सकता है। यदि राजनीतिक पंडितों ने लोकसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर विधानसभा चुनाव के नतीजों का आकलन शुरु कर दिया है तो शायद उनका आकलन गलत साबित हो सकता है। क्योंकि, 2019 के लोकसभा चुनाव तथा विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो बड़ा उलटफेर देखा गया था। 2019 में लोकसभा के 12 सीटों पर भाजपा – आजसू गठबंधन ने जीत हासिल किया था। लोकसभा चुनाव में भाजपा व आजसू पार्टी के गठबंधन में बड़ी जीत हासिल करने के बाद विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आजसू से अलग होकर भी “65 पार” का नारा जोर शोर से दिया था, लेकिन भाजपा के नतीजे बेहद खराब आए थे। वहीं, आजसू पार्टी को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था।
बात करें ईचागढ़ विधानसभा की, यहां से भाजपा व आजसू पार्टी के गठबंधन को लोकसभा में करीब एक लाख 19 हजार वोट आए थे जबकि विधानसभा चुनाव में दोनों दलों ने अलग अलग चुनाव लड़कर आजसू पार्टी ने द्वितीय स्थान तथा भाजपा ने तृतीय स्थान प्राप्त किया था। आजसू पार्टी ने करीब 38 हजार 800 तथा भाजपा ने करीब 38 हजार 400 वोट प्राप्त किया था। यदि दोनों वोटों को जोड़ा जाए तो एक लाख 19 हजार से काफी कम है। वहीं, आदिवासी व मुस्लिम समुदाय का एकमुश्त वोट तथा कुड़मी समुदाय का कुछ हिस्सा झामुमो के पक्ष में आया था, जिससे झामुमो ने जीत हासिल की थी। परंतु, बीते पांच साल के कार्यालय में झामुमो विधायक सविता महतो अपने कामकाज से अपने ही पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने में शायद नाकाम रही, तभी तो झामुमो के सुखराम हेम्ब्रम जैसे आदिवासी नेता ने बगावत शुरू कर दिया है। सुखराम हेम्ब्रम को जिस तरह से आदिवासी तथा मुस्लिम समुदाय की ओर से समर्थन मिल रहे हैं, यह विधायक सविता महतो के प्रति नाराजगी का ही संकेत माना जा रहा है।