नक्सलियों के गढ़ में शांत हुआ गोलियों की तड़तड़ाहट लेकिन पांव पसार रहा अवैध कारोबार
विश्वरूप पांडा
एक दशक पहले तक सरायकेला – खरसावां जिले के अधिकांश हिस्से को नक्सलियों का गढ़ माना जाता था। कई एजेंसियों ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को रेड जोन घोषित किया था। पुलिस प्रशासन की नजर में आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिसे अतिसंवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। एक समय हुआ करता था जब नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को कदम रखने से पहले तैयारी करनी पड़ती थी। सरकारी कार्यक्रम करना या किसी योजना को संपन्न कराना बड़ी चुनौती होती थी। नक्सलियों द्वारा योजनाओं में बाधा उत्पन्न किया जाता था। स्कूल भवनों को बम से उड़ा दिया जाता था। एक समय था जब गोलियों की तड़तड़ाहट और बम धमाकों से कई पंचायत जाने जाते थे।
जिले के चांडिल अनुमंडल का चांडिल और नीमडीह क्षेत्र प्रशासन की सूची में अतिसंवेदनशील क्षेत्र हुआ करता था। एक तरफ चांडिल और नीमडीह के हिस्से में पड़ने वाली दलमा को आज भी नक्सल प्रभावित इलाकों में जाना जाता है। दूसरी ओर चांडिल प्रखंड के पश्चिमी छोर स्थित पहाड़ी व जंगल के घिरे हैंसाकोचा, उरमाल, धुनाबुरु, मातकमडीह आदि पंचायत आज भी नक्सल प्रभावित माना जाता है। हालांकि, अब इन क्षेत्रों में नक्सली गतिविधियों में काफी कमी आई हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से चलाए जा रहे विभिन्न अभियान के कारण चांडिल अनुमंडल क्षेत्र में नक्सली गतिविधि काफी हद तक शांत हुआ है। 2019 में कुकडू हाट की घटना के बाद कोई बड़ी घटना सामने नहीं आई हैं। इसके बावजूद आज भी क्षेत्र के सांसद, विधायक और जिला प्रशासन के अधिकारी तथाकथित नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जाने से कतराते हैं।
विभिन्न योजनाओं और अभियान की सफलता के कारण नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सली गतिविधियों में कमी आई हैं, यह सरकार और प्रशासन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। लेकिन अब अवैध कारोबार ने विकराल रूप धारण करना शुरू कर दिया है, जो सरकार और प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती बनकर सामने खड़ी है। जिन इलाकों में कभी गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई देती थी और जब तब बम धमाकों की गूंज सुनाई देती थी, उन इलाकों में अब अवैध कारोबार ने पांव पसारना शुरू कर दिया है। समय समय पर मिनी शराब फैक्टरी का खुलासा होना, अफीम की खेती इसका जीता जागता उदाहरण है। हाल के दिनों में चांडिल अनुमंडल के दलमा तराई क्षेत्र में कई मिनी शराब फैक्टरी का भंडाफोड़ हो चुका है। दूसरी ओर चौका थाना क्षेत्र के हैंसाकोचा क्षेत्र में अफीम की खेती का कारोबार खूब फलफूल रहा है। बीहड़ जंगलों के बीच बसा हैंसाकोचा में भी मिनी शराब फैक्टरी का खुलासा हुआ है। क्या इन अवैध कारोबार की जानकारी स्थानीय पुलिस को नहीं है? या स्थानीय पुलिस की सूचनातंत्र कमजोर पड़ रही हैं?
एसपी मनीष टोप्पो द्वारा गठित विशेष टीम ने चौका थाना क्षेत्र के हैंसाकोचा में छापेमारी की और व्यापक स्तर पर संचालित हो रही मिनी शराब फैक्टरी का भंडाफोड़ किया है। यहां पर नकली शराब बनाकर उसे मार्केट में बेचा जा रहा था। इस जहरीली शराब को पीकर लोग मौत के मुंह में जा रहे हैं। एसपी के विशेष टीम ने छापेमारी करके 70 पेटी नकली शराब तथा 425 किलोग्राम डोडा को बरामद किया है। इसके अलावा नकली शराब बनाने में उपयोग किए जाने वाली स्प्रिट, खाली बोतलें, ढक्कन, विभिन्न ब्रांड के रैपर तथा इलेक्ट्रॉनिक तराजू भी बरामद किया है। हालांकि, छापेमारी की भनक लगते ही शराब फैक्टरी के संचालक समेत सभी कर्मी फरार होने में सफल रहे।
यह बड़ा सवाल है कि बीहड़ जंगलों के बीच में अवैध रूप से शराब कारोबार को स्थापित करने के पीछे मुख्य सूत्रधार के रूप में कौन लोग हैं? जंगलों के बीच में बसे ग्रामीणों के पास इतनी पूंजी और जानकारी नहीं है कि वह स्प्रिट, विभिन्न ब्रांड के रैपर, हजारों खाली बोतल, सील मशीन, शराब मिक्सिंग मशीन इत्यादि खरीदकर अवैध कारोबार को खड़ा कर सके। हां, यह जरूर है कि स्थानीय लोगों को रुपयों का प्रलोभन देकर उनका सपोर्ट लिया जाता है। अबतक जितने भी मिनी शराब फैक्टरी का खुलासा हुआ है, उसमें किसी न किसी पुराने शराब माफिया का कनेक्शन सामने आया है। जंगलों के बीच शराब के अवैध कारोबार के पीछे वैसे लोग शामिल हैं जो शहरों में आना जाना करते हैं या फिर शहरों के लोग हैं। यदि पुलिस चाहे तो मुख्य सूत्रधारों तक पहुंच कर उनके विरुद्ध कार्रवाई कर सकती हैं।