आदिवासियों से कोसों दूर है “मोदी की गांरटी” दस साल के कार्यकाल में सांसद विद्युत महतो ने बोड़ाम के भूमिज समाज की ओर एक बार झांका तक नहीं
जमशेदपुर। लोकसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी हैं। सभी दल चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं। लोकलुभावन घोषणाओं की झड़ी लगा रहे हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश वासियों को अपना परिवार बता रहे हैं और मोदी की गांरटी दे रहे हैं। लेकिन जब पीएम मोदी को पता चलेगा कि जमशेदपुर के आदिवासी समाज तक उनकी एक भी योजना और घोषणा नहीं पहुंची है तो वे क्या करेंगे? क्या पीएम मोदी इस मामले को संज्ञान में लेंगे?
जमशेदपुर के बोड़ाम क्षेत्र में एक ऐसा भी गांव है, जहां बीते दस साल में एक बार भी जमशेदपुर सांसद नहीं पहुंचे हैं। दलमा के तराई में कोंकादासा गांव है। यह जमशेदपुर लोकसभा के बोड़ाम क्षेत्र में है। यहां करीब 28 परिवार हैं जो आदिवासी भूमिज समुदाय के हैं। बीते दस साल में जमशेदपुर सांसद विद्युत वरण महतो ने इस गांव की तरफ झांका तक नहीं है। ऐसे में मोदी की गांरटी, सबका साथ – सबका विकास, मोदी का परिवार जैसी बातें केवल चुनावी जुमला ही कहा जा सकता है।
रोजगार के अभाव में कोंकादासा गांव के पुरूष कर चुके हैं पलायन – बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा का घोर अभाव
बोड़ाम के कोंकादासा गांव में रोजगार के अभाव में आदिवासी परिवार के लोग पलायन कर चुके हैं। यहां के 28 परिवार के अधिकांश पुरूष रोजगार के लिए पलायन कर दूसरे राज्यों में जा चुके हैं। महिलाएं और बच्चे घरों पर हैं, जो स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं। बताया जा रहा है कि गांव के पुरूष रोजी रोटी कमाने के लिए पश्चिम बंगाल, गुजरात, कर्नाटक, उत्तराखंड आदि राज्यों में गए हैं। कुछ लोग जमशेदपुर शहर में ही रहकर काम कर रहे हैं जो 15 – 20 दिन के अंतराल में एक बार घर आते हैं। कोंकादासा गांव में आज भी बिजली नहीं पहुंची है। गांव तक जाने के लिए सड़क का नामोनिशान नहीं है। पगडंडियों पर चलकर लोग गांव से बाहर निकल आते हैं। एक प्राथमिक विद्यालय है, जहां की पढ़ाई के बाद बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए जमशेदपुर शहर जाना पड़ता है। आसपास शिक्षा की सुविधा नहीं होने के कारण प्रायः सभी बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। चिकित्सा सुविधा नहीं है। बीमार पड़ने पर बोड़ाम सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जाते हैं। गांव की महिलाएं रोजी रोटी के लिए जंगल से सूखे लकड़ी और पत्ते चुनकर बोड़ाम हाट बाजार में बेचते हैं। साप्ताहिक हाट बाजार में लकड़ी और पत्ते बेचकर घर की जरूरत पूरी करते हैं।
एक भी परिवार को नहीं मिला पीएम आवास, अबुआ आवास योजना का लाभ
केंद्र सरकार द्वारा गरीबों को पक्का मकान देने के उद्देश्य से पीएम आवास योजना की शुरुआत की गई हैं। वहीं, राज्य सरकार द्वारा अबुआ आवास, अंबेडकर आवास, बिरसा आवास आदि योजनाओं के माध्यम से जरूरतमंद लोगों को पक्का आवास दिया जा रहा है लेकिन आश्चर्यजनक बात है कि कोंकादासा गांव के 28 परिवार में से किसी भी परिवार को किसी भी आवास योजना का लाभ नहीं मिला है। सभी आदिवासी परिवार आज भी कच्चे घरों में रहने को मजबूर हैं। दलमा जंगल के बीचोबीच स्थित इस गांव में जंगली जानवरों का खतरा हमेशा बना रहता है। आए दिन हाथी, बाघ,भालू आदि जानवर घरों में घुसकर हमला करते हैं। गांव की महिलाएं और बच्चे पेड़ों में चढ़कर अपनी जान बचाते हैं। कोंकादासा गांव का दृश्य देखने के बाद ऐसा लगता है कि सरकार की योजनाएं केवल उन्हीं लोगों के लिए हैं जो लोग सांसद और विधायक के आगे पीछे घूमते हैं। या फिर सांसद और विधायक के नजर में इन आदिवासियों की कोई अहमियत ही नहीं है।