यहां मन्नत पूरी होने पर मिट्टी फेंकने और कबूतर छोड़े जाने की परंपरा, हजारों वर्ष से चली आ रही यह प्रथा सरायकेला – खरसावां जिले के नीमडीह क्षेत्र में एक ऐसा भी गांव है, जहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दूसरे दिन आख्यान जातरा पर मेला लगता है। इसमें प्राचीनकाल से माता खेलाई चंडी की पूजा चली आ रही हैं। वहीं, श्रद्धालुओं द्वारा माता की पूजा के दौरान मन्नत मांगी जाती हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा जोड़ा कबूतर छोड़ा जाता है। इसके अलावा स्थानीय तालाब से मिट्टी उठाकर फेंकने की परंपरा है।
सरायकेला – खरसावां जिले के नीमडीह प्रखंड अंतर्गत बामनी स्थित प्राचीन माँ खेलाई चंडी थान में मंगलवार को पूजा हुई। जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी। यहां श्रद्धालुओं ने खेलाई चंडी थाना में पूजा अर्चना की। वहीं, जिन श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी हुई हैं, उन्होंने जोड़ा कबूतर छोड़ा। इसके अलावा मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालुओं ने स्थानीय तालाब से मिट्टी उठाकर फेंकने की परंपरा का निर्वहन किया। शाम को पूजा संपन्न होने पुजारियों द्वारा हवन यज्ञ किया गया। ततपश्चात बकरे की बलि चढ़ाने की परंपरा को पूरा किया गया। यहां मन्नत पूरी होने वाले सैकड़ों श्रद्धालुओं ने बकरा (पांठा) की बलि चढ़ाई।
माँ खेलाई चंडी मेला के संरक्षक सह नीमडीह जिला परिषद सदस्य असित सिंह पात्र ने बताया कि हजारों वर्ष से यहां पूजा हो रही हैं। यहां मन्नत मांगने पर पूरी होती हैं। मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा स्थानीय तालाब से मिट्टी फेंकने, जोड़ा कबूतर छोड़ने, बकरा का बलि चढ़ाने, दंडी देने की परंपरा है। उन्होंने बताया कि यहां प्रकृति की पूजा होती हैं। जिसमें खेलाई चंडी थान पर पूजा होती हैं।