35 साल से फसल उगा रहे ईचागढ़ विधानसभा के कार्यकर्ता, जिसे काटकर ले जाते हैं दूसरे विधानसभा के नेता – राजघराने के बाद 1990 से गैर मतदाता विधायक
विश्वरूप पांडा
झारखंड में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई हैं। हर दल चुनावी अभियान में जुट गई हैं। भाजपा और आजसू पार्टी ने तो लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद ही अपनी तैयारी शुरू कर दी है। वहीं, अब झामुमो, कांग्रेस, राजद समेत अन्य दलों ने भी अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में एक ऐसा भी विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां का चुनाव रोचक होता है। हम बात कर रहे ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र की, जहां हर बार दूसरे विधानसभा के प्रत्याशी को लाकर चुनाव लड़ाया जाता हैं और वह जीत भी जाते हैं। इसमें भाजपा और झामुमो ने ही अधिकांश समय तक दूसरे विधानसभा से प्रत्याशी बनाया है। जबकि, दूसरे विधानसभा के मतदाता प्रत्याशियों को जीत दिलाने में ईचागढ़ के स्थानीय कार्यकर्ताओं की ही मुख्य भूमिका रहती हैं। यानी कि ईचागढ़ विधानसभा के कार्यकर्ता अपने कठोर परिश्रम और त्याग देकर फसल उगाते हैं, जिसे दूसरे विधानसभा के प्रत्याशी काटकर ले जाते हैं।
वोटों के ध्रुवीकरण और जातीय समीकरण का ऐसा खेल रचा जाता है कि चाहकर भी 1990 के बाद से अबतक ईचागढ़ में कोई स्थानीय (मतदाता) विधायक नहीं बन पाया। हर बार विधानसभा चुनाव में स्थानीय विधायक का मुद्दा जोर शोर से उठाया जाता है लेकिन अंततः चुनाव के नतीजे विपरीत ही आते हैं। ऐसा जातीय समीकरण और वोटों के ध्रुवीकरण से ही संभव होता है। ऐसा नहीं है कि ईचागढ़ विधानसभा में स्थानीय नेताओं की कमी है, बल्कि गौर से देखें तो हर दल में एक – दो ऐसे नेता मिल ही जायेंगे जो क्षेत्र का नेतृत्व अच्छे ढंग सकते हैं। बल्कि यहां तक माना जाता है कि दूसरे विधानसभा से आकर विधायक बनने वालों से बेहतर काम स्थानीय नेता ही कर सकते हैं। क्योंकि स्थानीय नेताओं को क्षेत्र के समस्याओं की अधिक जानकारी होती हैं।
जानिए स्थानीय और गैर स्थानीय विधायक का अंतर
दअरसल, यहां लोग भ्रमित हो जाते हैं कि हम किसे स्थानीय और किसे गैर स्थानीय बताते हैं। वैसे तो समय समय पर स्थानीय और गैर स्थानीय की परिभाषा अलग अलग ढंग से व्याख्या किया जाता हैं। कभी खतियान को आधार बनाया जाता हैं तो कभी झारखंड, यूपी, बिहार, बंगाल निवासी के रूप में परिभाषित किया जाता हैं। लेकिन ईचागढ़ विधानसभा में स्थानीय और गैर स्थानीय की परिभाषा अलग है। यहां 1990 के बाद से ईचागढ़ विधानसभा में गैर स्थानीय विधायक ही जीत रहे हैं।
गैर स्थानीय यानी वैसे उम्मीदवार जो ईचागढ़ विधानसभा के मतदाता नहीं है, वह दूसरे विधानसभा के मतदाता हैं। उदाहरण के रूप में वर्तमान झामुमो विधायक सविता महतो ईचागढ़ की विधायक हैं लेकिन वह जमशेदपुर पश्चिमी विधानसभा की मतदाता हैं। ठीक उसी तरह भाजपा के पूर्व विधायक स्वर्गीय साधुचरण महतो ईचागढ़ से 2014 में विधायक चुने गए थे लेकिन वह सरायकेला विधानसभा क्षेत्र के मतदाता थे। 2009 में ईचागढ़ से विधायक बने अरविंद कुमार सिंह भी सरायकेला विधानसभा के मतदाता हैं। है न मजे की बात, जो ईचागढ़ से विधानसभा के जनता के वोटों से चुनाव जीत जाते हैं वैसे प्रत्याशी स्वयं अपने आप को भी वोट नहीं डालते हैं। जबकि, कोल्हान समेत राज्य के अधिकांश विधानसभा में वहां के स्थानीय मतदाता को ही उम्मीदवार बनाया जाता हैं और वह विधायक हैं। उदाहरण के तौर पर सरायकेला, खरसावां, जमशेदपुर, पोटका, घाटशिला, बहरागोड़ा, तमाड़, सिल्ली, रांची, खिजरी, हटिया, जुगसलाई, चाईबासा, चक्रधरपुर आदि ऐसे विधानसभा क्षेत्र है, जहां पर स्थानीय विधायक हैं। इसके अलावा कोयलांचल क्षेत्र के प्रायः सभी विधायक स्थानीय ही हैं।
जानिए कब से गैर स्थानीय विधायक बनने का सिलसिला शुरू हुआ
देश आजादी के बाद 1990 तक ईचागढ़ में स्थानीय विधायक ही रहे। प्रभात कुमार आदित्यदेव, घनश्याम महतो, शत्रुघ्न आदित्यदेव तीनों ही ईचागढ़ के स्थानीय विधायक के रूप में चुने गए थे। 1990 में झामुमो ने जमशेदपुर के मतदाता स्वर्गीय सुधीर महतो को अपना उम्मीदवार बनाया था, जिसमें युवराज प्रभात कुमार आदित्यदेव को हार का सामना करना पड़ा था। बस इसके बाद से दूसरे विधानसभा के मतदाता उम्मीदवारों के जीत का सिलसिला शुरू हो गया है जो आजतक कायम है।
झामुमो और भाजपा ने शुरू किया गैर स्थानीय उम्मीदवार थोपने का परंपरा
1990 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार स्वर्गीय सुधीर महतो की जीत के बाद से ही गैर स्थानीय उम्मीदवारों का बोलबाला स्थापित हो गया। इस बीच 1995 में गैर स्थानीय मतदाता अरविंद कुमार सिंह ने भी ईचागढ़ विधानसभा में एंट्री मारी। वह मूल रूप से बिहार के जमुई के निवासी हैं। 1995 में अरविंद कुमार सिंह ईचागढ़ से निर्दलीय विधायक के रूप में चुने गए। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 1990 में सुधीर महतो के विधायक बनने के बाद उनके कुछ करीबी समर्थकों के कार्यशैली से क्षेत्र के जनता काफी आक्रोशित हो गए थे। नतीजतन, लोगों ने निर्दलीय विधायक के रूप में अरविंद कुमार सिंह को चुन लिया था। यहां सुधीर महतो के करीबियों की हरकतों से नाराज होकर जनता ने अरविंद कुमार सिंह को अपना जनप्रतिनिधि चुन लिया था।
जब 2000 में अलग राज्य के रूप में झारखंड गठन हुआ तो ईचागढ़ विधानसभा के लोगों के मन उम्मीद जगी थी कि राजनीतिक दलों द्वारा स्थानीय उम्मीदवारों पर दांव खेला जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक तरफ झामुमो ने सुधीर महतो को ही अपना उम्मीदवार बनाया तो दूसरी तरफ भाजपा ने भी अरविंद कुमार सिंह को उम्मीदवार घोषित कर दिया था। 2000 में अलग झारखंड गठन होने के बाद ही झारखंड की राजनीति में भाजपा का अस्तित्व कायम हुआ। 2000 में भाजपा के टिकट से अरविंद कुमार सिंह विधायक चुने गए। इस चुनाव में कांग्रेस ने गैर स्थानीय उपेंद्र सिंह उर्फ मस्तान सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था।
2000 के चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में स्थानीय नेता हिकीम चंद्र महतो ने पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़े थे और वह दूसरे स्थान पर रहे। 2000 में ईचागढ़ विधानसभा में भाजपा का अपना कोई जनाधार नहीं था, अरविंद कुमार सिंह के जीत के पीछे झामुमो प्रत्याशी सुधीर महतो के प्रति लोगों की नाराजगी को ही कारण बताया जाता हैं।
ज्ञात हो कि ईचागढ़ विधानसभा में उस समय भाजपा का कोई जनाधार नहीं था। तब ईचागढ़ के स्थानीय नेता ने भाजपा की बागडोर संभाली और भाजपा संगठन को गांव – गांव तक विस्तार करने में मुख्य भूमिका निभाया था। क्षेत्र के जनता को उम्मीद थी कि 2000 में भाजपा अपने संगठन के कर्मठ नेता हिकीम चन्द्र महतो को ही अपना उम्मीदवार बनाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भाजपा ने उस समय भी ईचागढ़ विधानसभा के कार्यकर्ताओं के भावनाओं के विपरीत निर्णय लिया था।
2005 में फिर एक बार झामुमो से सुधीर महतो तथा भाजपा ने अरविंद कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया, जिसमें सुधीर महतो ने दस साल बाद फिर जबरदस्त वापसी की। सुधीर महतो ने भाजपा के अरविंद सिंह को पछाड़ दिया और ईचागढ़ विधायक के रूप में चुने गए। 1995 से 2005 तक इस दस साल में सुधीर महतो ने अपने कार्यशैली पर काम किया, कार्यकर्ताओं को अनुशासित किया था, जिसके फलस्वरूप उन्हें जीत हासिल हुई थी और भाजपा के अरविंद सिंह हारे थे। इससे पता चलता है कि जो लोग झामुमो के प्रति नाराज चल रहे थे वह फिर से झामुमो की ओर करवट बदल लिया था। 2005 तक भाजपा का अपना कोई जनाधार नहीं था। यदि जनाधार होता तो उस समय भी भाजपा प्रत्याशी अरविंद कुमार सिंह जीत जाते।
हालांकि, 2005 में भी स्थानीय नेता हिकीम चंद्र महतो चुनावी मैदान में रहे। वह आजसू पार्टी से चुनाव लड़े थे लेकिन इस बार उनका वोट प्रतिशत काफी कम हो गया था। 2005 में हार का मुंह देखने के बाद अरविंद कुमार सिंह ने भाजपा को अलविदा कह दिया था और भाजपा की कब्र खोदने में कोई कसर नहीं छोड़ा था। इस बीच भाजपा में साधुचरण महतो की एंट्री होती हैं जो संगठन को खड़ा करने में खूब मेहनत किया था। उधर, अरविंद कुमार सिंह झारखंड विकास मोर्चा में चले गए थे।
फिर 2009 में झामुमो से सुधीर महतो, भाजपा से साधुचरण महतो, आजसू पार्टी से विश्वरंजन महतो व झारखंड विकास मोर्चा से अरविंद कुमार सिंह उम्मीदवार थे। वैसे तो हर चुनाव में अनेकों उम्मीदवार चुनावी मैदान होते हैं लेकिन बात उनकी हो रही हैं जिन्हें दमदार उम्मीदवार के रूप में जाना जाता है।
2009 में स्थानीय उम्मीदवार हिकीम चंद्र महतो के बदले आजसू पार्टी ने स्थानीय उम्मीदवार के रूप में विश्वरंजन महतो को उम्मीदवार बनाया था। जबकि झामुमो, झारखंड विकास मोर्चा तथा भाजपा तीनों ने गैर स्थानीय को ही अपना उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा और कांग्रेस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था, जिसके कारण अरविंद कुमार सिंह ने फिर एक बार जीत हासिल की। जबकि, दूसरे स्थान पर आजसू पार्टी के विश्वरंजन महतो रहे। वहीं, झामुमो के सुधीर महतो तीसरे तथा भाजपा के साधुचरण महतो चौथे स्थान पर अटक गए थे। 2009 तक ईचागढ़ में भाजपा का अपना कोई जनाधार नहीं था, तभी तो चौथे स्थान पर ही साधुचरण महतो अटक गए थे। वहीं, 2009 में अरविंद कुमार सिंह के जीत के पीछे वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामा गुरुचरण किस्कु बड़ा फैक्टर बने थे। उस चुनाव में सीएम हेमंत सोरेन के मामा गुरुचरण किस्कु ने भी स्थानीय प्रत्याशी के रूप में निर्दलीय चुनाव लड़े थे, आदिवासियों ने उनके पक्ष में बढ़चढ़ कर मतदान किया था। नतीजतन, झामुमो के सुधीर महतो उपमुख्यमंत्री रहते हुए भी बुरी तरह से हारे थे। क्योंकि, आदिवासी वोट को झामुमो का पॉकेट वोट माना जाता है, ऐसे में आदिवासी वोट गुरुचरण किस्कु की ओर शिफ्ट होने से सुधीर महतो की हार और अरविंद कुमार सिंह के जीत में बड़ी भूमिका निभाई थी। अरविंद कुमार सिंह के जीत के पीछे झाविमो और कांग्रेस गठबंधन बड़ा कारण रहा, क्योंकि कांग्रेस की पॉकेट वोट मुस्लिम तथा झाविमो के पिछड़ी जातियों के वोट एक साथ हो गया था।
2009 चुनाव के बाद 2013 में सुधीर महतो का निधन हो गया। वहीं, 2009 में चुनाव हारने के बाद दूसरे स्थान पर रहे विश्वरंजन महतो पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए थे। उधर, भाजपा के साधुचरण महतो चौथे स्थान पर जाने के बाद भी हार नहीं मानी और लगातार क्षेत्र में डटे रहे।
2014 में झामुमो ने सुधीर महतो की पत्नी सविता महतो को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। वहीं, अरविंद कुमार सिंह फिर एक बार झारखंड विकास मोर्चा से चुनावी मैदान पर उतरे थे। जबकि, भाजपा और आजसू पार्टी गठबंधन में चुनाव लड़ी थी। मजे की बात यह है कि इस बार झामुमो और कांग्रेस में गठबंधन नहीं हुआ था, जिसके चलते कांग्रेस ने हिकीम चंद्र महतो को अपना उम्मीदवार बनाया था। उस समय आजसू के प्रत्याशी विश्वरंजन महतो निष्क्रिय होने के बाद आजसू का नेतृत्व करने वाला कोई दमदार प्रत्याशी नहीं था। जबकि, भाजपा के साधुचरण महतो मैदान में डटे हुए थे। इस लिहाज से भाजपा व आजसू पार्टी के गठबंधन ने साधुचरण महतो को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था। आजसू पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने तथा साधुचरण महतो के कड़ी मेहनत के फलस्वरूप दस साल बाद 2014 में भाजपा ने ईचागढ़ विधानसभा में वापसी की। रिकॉर्ड मतों से साधुचरण महतो विधायक बने थे। जबकि, झामुमो के सविता महतो दूसरे स्थान पर तथा झारखंड विकास मोर्चा के अरविंद कुमार सिंह तीसरे स्थान पर रहे। वहीं, कांग्रेस के स्थानीय उम्मीदवार हिकीम चंद्र महतो चौथे स्थान पर ही अटक गए।
2019 में झामुमो और कांग्रेस में फिर एक बार गठबंधन हुआ और झामुमो ने सविता महतो पर दांव खेला। वहीं, भाजपा और आजसू पार्टी का गठबंधन टूट गया था। भाजपा से साधुचरण महतो तथा आजसू पार्टी से हरेलाल महतो चुनावी मैदान पर थे। जबकि, अरविंद कुमार सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े थे। 2014 चुनाव हारने के बाद ही अरविंद कुमार सिंह ने झाविमो और उसके सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी को बाय बाय कर दिया था।
2019 में झामुमो व कांग्रेस गठबंधन के कारण सविता महतो ने जीत हासिल कर लिया। जबकि आजसू पार्टी के स्थानीय उम्मीदवार हरेलाल महतो ने पहली बार चुनाव लड़कर दूसरे स्थान पर कब्जा कर लिया। वहीं, भाजपा के दिग्गज नेता साधुचरण महतो तीसरे स्थान पर तो तथाकथित दिग्गज नेता अरविंद सिंह चौथे स्थान पर चले गए थे।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि 2009 और 2019 दोनों ही बार भाजपा और आजसू पार्टी ने अलग होकर चुनाव लड़ा था, जिसमें दोनों ही बार आजसू पार्टी ने दूसरे स्थान पर अपना स्थान बरकरार रखा था। जबकि, भाजपा 2009 में चौथे स्थान पर तथा 2019 में तीसरे स्थान पर पिछड़ गया था। दूसरी ओर झामुमो और कांग्रेस जब भी अलग लड़ी, दोनों ही जीत से दूर हुए हैं।