और धधकती आग पर चलकर श्रद्धालु ने दिखाई भक्ति की शक्ति…….
भारतीय इतिहास में आस्था की शक्ति और उसके चमत्कारों की कहानी सुनने को मिलती हैं। आदिकाल में हठयोग और ईश्वर की भक्ति में डूबे श्रद्धालुओं का करिश्मा देखने को मिलता था, इसका धार्मिक ग्रंथों में वर्णन है। आज भी कभी कभी खबरें आती हैं कि कहीं हाड़ कंपाने वाली सर्द मौसम में कई दिनों तक गहरे पानी में ईश्वर का ध्यान करना, तो कहीं पर कोई संत कई वर्षों से एक पैर के सहारे खड़े हैं। सदियों से चली आ रही ईश्वर के प्रति वह विश्वास और परंपरा आज भी भारत के कई हिस्सों में देखने को मिल ही जाते हैं।
आज भी झारखंड के कोल्हान में ग्रामीण क्षेत्रों में आस्था और हठधर्मिता का संगम देखने को मिलता है। कोल्हान के सरायकेला – खरसावां जिला के ईचागढ़ प्रखंड क्षेत्र के सुदुरवर्ती गांवों में ईश्वर पर विश्वास और आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं द्वारा भिन्न भिन्न प्रकार के करतब दिखाए जाते हैं और परंपरा निर्वहन किया जाता है।
रविवार को ईचागढ़ प्रखंड क्षेत्र के लावा गांव में आस्था, श्रद्धा और हठधर्मिता का अनोखा संगम देखने को मिला। चढ़क पूजा के अवसर पर गांव की बुटन ग्वालिन ने धधकती आग पर चलकर प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया। बताया जाता है कि प्रति वर्ष होने वाले चढ़क पूजा के आराध्य देव भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालुओं द्वारा स्वयं के शरीर को तरह तरह की यातनाएं दी जाती हैं। हालांकि, इस आग पर चलने और अंगारों के ऊपर पैर रखने के बाद भी कोई असर नहीं होता है, यह चमत्कार है या कोई विज्ञान?
श्रद्धालु आग पर चलकर भगवान शिव को अपनी भक्ति का परिचय देते हैं। इस प्रकार भक्ति की शक्ति से श्रद्धालुओं द्वारा एक से बढ़कर एक हैरतअंगेज करतब दिखाए जाते हैं। धधकती आग पर चलने के अलावा लोहे की हुक से पीठ छिदवाने और उसी हुक पर रस्सी बांधकर 50 फीट ऊंचे खूंटा पर लटकने की परंपरा भी है। इन परंपराओं को निभाने वाले श्रद्धालुओं को व्रत का पालन करना पड़ता है। बताया जाता है कि महीनेभर पहले से व्रती को उन नियमों का पालन करना पड़ता हैं जो चढ़क पूजा (भोगता) में बताए जाते हैं। पूजा के दिन से दूसरे दिन तक निर्जला उपवास रखना पड़ता है।
बताया जाता है कि आग या अंगारों पर चलने अथवा पीठ को हुक से छिदवाने के बाद किसी ने का उपचार नहीं करवाते हैं। इस मामले में श्रद्धालु विज्ञान को चुनौती देते हैं और लोहे की हुक शरीर में जाने के बाद भी किसी तरह का इलाज या दवा का उपयोग नहीं करते हैं। बिना इलाज और बिना दवा से एक – दो दिन में ही शरीर के घाव ठीक हो जाते हैं। क्या इसे ईश्वर का चमत्कार कहा जा सकता है?