क्या यही है आजादी का अमृत महोत्सव? 150 की आबादी वाले इस गांव में मोदी की गारंटी फेल, अबुआ सरकार की विकास योजना भी कोसों दूर – ग्रामीण कर रहे वोट बहिष्कार पर विचार
VISHWARUP PANDA
चांडिल। लोकसभा आम निर्वाचन की डुगडुगी बजते ही राजनीतिक दलों ने अपना पिटारा खोलना शुरू कर दिया है। कोई देश वासियों को गारंटी दे रहा है तो कोई न्याय की बात कर रहा है और कोई अबुआ दिशोम – अबुआ राज – अबुआ सरकार का दंभ भर रहा है। पर, जब इस खबर को पढ़ेंगे तो शायद आप भी कहेंगे कि नेताओं की कथनी और करनी में आसमान – जमीन का फर्क है।
जब सरायकेला के- खरसावां जिले के इस गांव की दुर्दशा जानेंगे तो आपको भी मोदी की गारंटी, मोदी का परिवार, न्याय, भारत जोड़ो, अबुआ दिशोम – अबुआ राज – अबुआ सरकार आदि स्लोगन से चिढ़ हो जाएगी। ऐसा लगता है कि नेताओं के लिए देश की जनता सरकार बनाने के लिए वोट बैंक है और इससे ज्यादा कुछ भी नहीं है।
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सरायकेला – खरसावां जिला के ईचागढ़ प्रखंड अंतर्गत कांकीटाड़ नाम का एक गांव है, जहां करीब 150 की आबादी रहती हैं। इस गांव में तीन टोला है, जो तीनों टोला तीन अलग – अलग पंचायत के अंतर्गत आता है। परंतु, दुर्भाग्य की बात यही है कि देश की आजादी के 75 वर्ष बाद भी इस गांव लोगों को एक सड़क नसीब नहीं हुआ है। ग्रामीण एक अदद सड़क के लिए आज भी तरस रहे हैं और विभिन्न परेशानियों को झेल रहे हैं। कांकीटांड गांव ईचागढ़ प्रखंड के सितु, सोड़ो और तूता पंचायत के अंतर्गत आता है। तीनों पंचायत के अंतर्गत इस गांव का तीन टोला बंटा हुआ है।
गांव दृश्य कुछ इस प्रकार है कि चारों तरफ खेत है और बीच में गांव बसा हुआ है, जो एक तरह से टापू की तरह है। क्योंकि, इस गांव को जाने के लिए कोई सड़क ही नहीं है। कांकीटांड गांव के लोग खेतों के पगडंडियों के सहारे मुख्य सड़क तक आना जाना करते हैं। इस गांव के बच्चे सितु तथा पिलीद अथवा अन्य स्कूलों में पढ़ाई के जाते हैं। ग्रामीण पगडंडियों पर चलकर ही गांव से बाहर निकल पाते हैं। मुख्य सड़क से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित इस गांव के लोगों को बरसात के दिनों में काफी परेशानी झेलनी पड़ती हैं।
बरसात में इस गांव का दृश्य देखने से शायद स्वयं यमराज भी डर जाए। बरसात के मौसम में खेतों पर धान के फसल लगे रहते हैं, तब पैदल चलना भी ग्रामीणों को मुश्किल हो जाता हैं। ग्रामीण अपनी साइकिल या मोटरसाइकिल दूसरे गांव में अपने परिचितों के यहां छोड़ देते हैं और पैदल चलकर कीचड़ से लथपथ होकर अपने घर पहुंचते हैं।
गांव के किसी व्यक्ति के बीमार पड़ने पर स्थिति और भी भयावह हो जाती हैं। गांव के मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए उन्हें खाट पर लिटाकर चार लोग कंधा देकर मुख्य सड़क तक ले जाते हैं, जहां से वाहन अथवा एम्बुलेंस से आसपास तक पहुंचाया जाता है।
गांव की यह दुर्दशा देखकर आम लोगों का दिल पसीज जाएगा लेकिन शायद जनप्रतिनिधियों के लिए इस गांव के लोग विशेष महत्व नहीं रखते हैं। तभी तो आजादी के 75 वर्ष तथा अलग झारखंड गठन के 24 वर्ष बाद भी कांकीटांड की यह हालत है। इस 75 वर्ष में केंद्र और राज्य में प्रायः सभी दलों ने अपनी सरकार बनाई और आज भी जनता को बेहतर सेवा देने की गारंटी दे रहे हैं। पर, कांकीटांड की यह दुर्दशा उन सभी दलों और नेताओं के झूठे गारंटी को फेल बताने के लिए काफी है।
ऐसी स्थिति में हर किसी के जेहन में यह बात जरूर आएगी कि क्या एक साधारण सड़क निर्माण के लिए जनप्रतिनिधियों को फुर्सत नहीं है? या उन्हें इस काम में कोई दिलचस्पी ही नहीं है? केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा सड़क निर्माण के लिए न जाने कितने ही योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। वहीं, जिला परिषद, मुखिया आदि पंचायत के जनप्रतिनिधियों को भी सड़क निर्माण के लिए फंड उपलब्ध होते हैं लेकिन किसी भी सरकार या जनप्रतिनिधि ने कांकीटांड के ग्रामीणों के लिए एक अदद सड़क की व्यवस्था नहीं की। यह सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की विफलता नहीं तो क्या है?
गांव की महिला उमा देवी ने कहा कि हमारे गांव से निकलने के लिए आज तक सड़क नहीं बनाया गया। यहां कुछ भी विकास का काम नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि हम हर चुनाव में इस विश्वास के साथ मतदान करते हैं कि इस बार निर्वाचित होने वाले नए जनप्रतिनिधि और नई सरकार गांव में सड़क निर्माण कराएगी। लेकिन चुनाव के बाद जनप्रतिनिधि इस गांव की ओर झांकने तक नहीं आते हैं। फिर जब चुनाव आता है तो नेता वोट के बदले सड़क निर्माण करवाने का वादा करते हैं और वोट के बाद दिखाई नहीं देते हैं।
उमा देवी ने बताया कि इस बार उनके गांव कांकीटांड के ग्रामीण काफी नाराज हैं और इस बार के लोकसभा चुनाव को लेकर तरह तरह की चर्चा भी कर रहे हैं। गांव के लोग इस बार के लोकसभा चुनाव में वोट बहिष्कार कर सकते हैं अथवा सभी ग्रामीण नोटा पर मतदान कर सकते हैं। फिलहाल गांव के लोग विचार कर रहे हैं लेकिन अबतक किसी तरह का सटीक निर्णय नहीं किया है।